हमारे देश में किसानों की आत्महत्या एक राष्ट्रीय समस्या का रूप धारण कर चुकी है। आये दिन देश के किसी न किसी हिस्से से किसानों के आत्महत्या करने की खबरें मिलती रहती हैं। देश की प्रगति एवं विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद भी किसानों को जिन्दगी से निराश होकर ऐसे कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यह निश्चित रूप से गंभीर चिंता का विषय है। देश में किसानों द्वारा आत्महत्या करने के मामलों में अप्रत्याशित तौर पर काफी वृद्धि हुई है।
भारत में किसान आत्महत्या 199० के बाद पैदा हुई स्थिति है जिसमें प्रतिवर्ष दस हजार से अधिक किसानों के द्वारा आत्महत्या की रपटें दर्ज की गई हैं। भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है तथा मानसून की असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि परिस्थितियां समस्याओं के एक चक्र की शुरुआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फंसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। आरम्भ में किसानों द्वारा आत्महत्याओं की रपटें महाराष्ट्र से आईं लेकिन जल्दी ही आंध्र प्रदेश से भी आत्महत्याओं की खबरें आने लगीं। शुरुआत में लगा कि अधिकांश आत्महत्याएं महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के कपास उत्पादक किसानों ने की हैं लेकिन महाराष्ट्र के राज्य अपराध लेखा कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों को देखने से स्पष्ट हो गया कि पूरे महाराष्ट्र में कपास सहित अन्य नकदी फसलों के किसानों की आत्महत्याओं की दर बहुत अधिक रही है। आत्महत्या करने वाले केवल छोटी जोत वाले किसान नहीं थे बल्कि मध्यम और बड़े जोतों वाले किसान भी थे। राज्य सरकार ने इस समस्या पर विचार करने के लिए कई जांच समितियां बनाईं। बाद के वर्षों में कृषि संकट के कारण महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी किसानों ने आत्महत्याएं कीं।
सत्ता में कोई भी रहे, किसानों के लिए कोई भी दल गंभीर नहीं है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में किसानों की बदहाली मुद्दा तो था लेकिन आरोप प्रत्यारोप से आगे कोई चर्चा नहीं होती। 2०22 तक किसान की आमदनी को दो गुना करने के अपने सपने को साझा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जनसभाओं में कहते हैं कि राज्य में सरकार बनते ही किसानों का कर्ज माफ हो जाएगा। इस पर किसानों का कहना है कि ये नेता सिर्फ घडिय़ाली आंसू बहाते हैं। न पिछली यूपीए सरकार गंभीर थी और न ही वर्तमान मोदी सरकार यानी किसान अब सच्चाई समझने लगे हैं, और शायद बड़े सपने देखने से कतराने भी लगे हैं।
किसानों की आत्महत्या किसी भी समाज के लिए एक बेहद शर्मनाक स्थिति है। आखिर वो कौन सी परिस्थितियां हो सकती हैं जिसकी वजह से किसान, जो सबके लिए अनाज उपजाता है, वो आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है। भारत में अभी हाल के दिनों में किसानों के आत्महत्या करने के आंकड़ों में वृद्धि दर्ज की गयी है जो वाकई चिंता का विषय है और इस ओर अगर वक्त रहते ध्यान नहीं दिया गया तो ये हालात और भी बिगड़ सकते हैं। सरकार को किसानों की आत्महत्या जैसे ज्वलंत मुद्दे को समझने और उन कारणों जिनकी वजह से किसान इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं, का समाधान सोचने की आवश्यकता है।
भारत जैसे एक कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या बेहद चिंताजनक स्थिति है। कृषि क्षेत्र में निरंतर मौत का तांडव दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों का नतीजा है। दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के चलते कृषि धीरे-धीरे घाटे का सौदा बन गई है जिसके कारण किसान कर्ज के दुष्चक्र में फंस गए हैं। पिछले एक दशक में कृषि ऋणग्रस्तता में 22 गुना बढ़ोतरी हुई है, अत: सरकार को किसानों के लिये प्रभावी नीतियों का निर्माण करना होगा। सबसे बढ़कर इन नीतियों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना होगा।
किसानों की बेहतरी के लिए सरकारों ने अभी तक कई समितियां बर्नाइं। इन समितियों ने अच्छी सिफारिशें भी प्रस्तावित कीं, फिर भी किसानों के हालात में कोई सुधार नहीं आया है। जमीनी स्तर पर आज किसानों की हालत बेहद खराब है। उन्हें तमाम परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। किसानों की खुदकुशी रोकने के लिये यदि सरकार वाकई संजीदा है तो वह जल्द से जल्द एक ऐसी योजना बनाए जिसमें किसानों के हितों का खास ख्याल रखा जाए। किसानों के सामने ऐसी नौबत ही न आए कि वे खुदकुशी के बारे में सोचें। किसानों की स्थिति बेहतर बनाने और उन्हें आत्महत्या करने से रोका नहीं गया तो यह स्थिति और भी भयावह रूप धारण कर सकती है। उनके लिए फसल बीमा, फसलों का उच्च समर्थन मूल्य एवं आसान ऋण की उपलब्धता सरकार को सुनिश्चित करनी होगी तभी किसानों की स्थिति सुधरेगी और उन्हें आत्महत्या करने से रोका जा सकेगा।
अशोक भाटिया
राजनैतिक मुद्दों में शायद खो गया किसान आत्महत्या का मुद्दा!